पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में अद्वितीय साहस दिखाते हुए वीरगति प्राप्त करने वाले, परमवीर चक्र से सम्मानित, निर्मलजीत सिंह सेखों की जयंती पर शत्-शत् नमन
सन् 1971 की युद्ध में पाकिस्तान की वायुसेना के छक्के छुड़ाने वाले फ्लाइंग ऑफिसर शहीद निर्मलजीत सिंह सेखों का आज जन्मदिन है। इस जांबाज योद्धा का जन्म 1943 में पंजाब में हुआ था। उन्होंने 14 दिसंबर, 1971 को शौर्य और पराक्रम की ऐसी कहानी लिखी जो आज तक याद की जाती है। मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। भारतीय वायुसेना के इतिहास में वह परमवीर चक्र पाने वाले एक मात्र शहीद हैं।
बम
बरसाते छह विमान सिर पर मंडरा रहे थे। बमों से हवाई पट्टी का हाल भी खस्ता
हो गया था। ऐसे में जवाब देने के लिए कोई भी उड़ान भरे तो कैसे? उड़ान
भरने का मतलब था निश्चित मौत। पर एक 28 वर्षीय शख्स से यह देखा नहीं गया।
उसने अपना विमान स्टार्ट किया और मुकाबले के लिए आकाश में जा चढ़ा। दुश्मन
को हैरान करने वाला वह रणबांकुरा था निर्मलजीत सिंह सेखों। रणभूमि में
अदम्य साहस दिखाने के लिए निर्मल सिंह सेखों को परमवीर चक्र से सम्मानित
किया गया था। आज हम आपको बता रहे हैं कि चंद पलों में ही भारतमाता के इस
सपूत ने किस तरह पाकिस्तान के घुटने टिकवा दिये।
पाकिस्तान के छह विमानों का हमला
वह
14 दिसंबर, 1971 का दिन था। निर्मलजीत सिंह श्रीनगर में तैनात थे।
पाकिस्तान ने श्रीनगर हवाई अड्डे पर हमला कर दिया। एक के बाद एक उसके छह
विमान आए और हवाई अड्डे को निशाना बनाना शुरू कर दिया। हमला अप्रत्याशित
था। दुश्मन के हवाई जहाज गोता मारते, बम-गोलियां बरसाते और फिर आकाश की और
बढ़ चलते। ऐसी स्थिति में हैंगर से विमान निकाल कर उड़ान भरना भी संभव
प्रतीत नहीं हो रहा था। हैंगर से विमान निकाल कर उड़ान भरने तक एक निश्चित
समय लगता है। और इस बीच अगर दुश्मन के विमान फिर आ पहुंचे तो रनवे पर खड़े
विमान का नष्ट होना तय समझिए। दुश्मन के विमान पहले ही हमले में हवाई पट्टी
को काफी नुकसान पहुंचा चुके थे।
निर्मलजीत सिंह सेखों जैसी हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई
थोड़ी देर में चक्कर काटकर दुश्मन के विमान दोबारा आए। उन्होंने गोता
लगाते हुए फिर बमबारी की और पुनः आने के लिए फिर आकाश की ओर बढ़ चले। पर इस
बीच निर्मलजीत सिंह सेखों वक्त गंवाए बिना अपने विमान नेट में जा बैठे।
इंजन स्टार्ट कर दिया। उन्होंने तेजी से हिसाब लगा लिया था कि दुश्मन के
विमान को आने में कितना समय लगेगा। दुश्मन के विमान वापस आने के समय में
चंद सेकंड का हेरफेर बड़ा खतरा साबित हो सकता था। क्षतिग्रस्त रनवे एक अलग
खतरा था। पर निर्मलजीत सिंह ने खतरा उठाया। दुश्मन के विमान हमला कर जैसे
ही पलटे उन्होंने अपने विमान को हवाई पट्टी पर मोड़ा और देखते ही देखते
विमान हवा से बातें करना लगा।
इसी भारत-पाक युद्ध में मुस्तैदी के
साथ अपनी भूमिका निभाने वाले मेजर जनरल (सेवा निवृत्त) सूरज प्रकाश भाटिया
ने उनके बारे में लिखा है-‘दुश्मन के छह आधुनिक विमान सिर पर मंडरा रहे थे
और नेट जैसे पुराने ढर्रे के विमान में बैठा एक अकेला जांबाज उनसे लोहा
लेने ऊपर जा चढ़ा। ऐसी हिम्मत तो आज तक किसी ने नहीं दिखाई थी। ऐसा जोखिम
भरा काम कोई विरला रणबांकुरा ही कर सकता है।’
सेखों ने दुश्मन के विमान के कर दिए दो टुकड़े
सचमुच विरले रणबांकुरे ही थे निर्मलजीत सिंह सेखों। उन्हें पता था कि
पाकिस्तान के अपेक्षाकृत छह आधुनिक विमानों से मुकाबला आसान नहीं है। पर
उन्हें अपने युद्ध कौशल और अपने प्यारे नेट विमान पर भरोसा था। दुश्मन
हैरान कि उनके छह विमानों के हमले के बीच कौन है जो मुकाबले के लिए आ गया।
सेखों ने दुश्मन के एक विमान को टारगेट कर अपने हवाई जहाज में लगी तोप दाग
दी। तोप से निकले गोले ने दुश्मन के विमान के दो टुकड़े कर दिए। हमले से
हक्का-बक्का दुश्मन कुछ समझ पाता इससे पहले ही सेखों ने दूसरे विमान पर
गोला दागा। दूसरे विमान में आग लग गई।
अंतिम सांस तक मुकाबला करते रहे सेखों
सूरज प्रकाश भाटिया लिखते हैं-‘अब रह गए दुश्मन के चार विमान और हमारा
एक अकेला अलबेला। चाहते तो फ्लाइंग ऑफिसर अपने विमान को उनकी पकड़ के बाहर
ले जा सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।शत्रु के विमानों के साथ और
दो-दो हाथ करने के लिए वे वहीं अड़े रहे।’
दुश्मन के चारों विमानों
ने भारतीय रणबांकुरे सेखों को घेर लिया। काफी देर तक आकाश में जोर आजमाइश
और पाकिस्तानी विमानों को छकाने के बाद निर्मलजीत सिंह देश के लिए बलिदान
हो गए। रोंगटे खड़े कर देनी वाली यह घटना इतिहास का अभिन्न अंग बन गई और
भावी पीढ़ियों को इस बात की प्ररेणा दे गई जान से ज्यादा कीमती मातृभूमि
होती है। पाकिस्तानी पायलट भारतमाता के इस सपूत के सर्वोच्च बलिदान को
देखकर हतप्रभ थे और उनके अंदर खौफ भी घर कर गया था कि कहीं ऐसा न हो कि
सेखों जैसा कोई और आ जाए। इसलिए पाकिस्तान विमान दुम दबाकर वापस लौट गये औऱ
दुबारा नहीं आए। सेखों के अदम्य साहस ने पाकिस्तान के हमले को वहीं थाम
दिया।
दुश्मन ने भी की सेखों के पराक्रम की तारीफ
उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 28 बरस थी। छोटी सी उम्र में ही उन्होंने पराक्रम
की ऐसी कहानी लिख दी है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। भारतीय माता के
इस सपूत के साहस ने दुश्मन का मनोबल तोड़ दिया था। मरणोपरांत उन्हें परमवीर
चक्र से सम्मानित किया गया। वह भारतीय वायुसेना के पहले और एकमात्र अफसर
बने जिन्हें यह सम्मान मिला। उनकी वीरता के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं।
पाकिस्तान की वायुसेना के रिटायर्ड एयर कोमोडोर कैसर तुफैल ने अपनी किताब
ग्रेट एयर बैटल्स ऑफ पाकिस्तान में निर्मलजीत सिंह सेखों के पराक्रम का
बयान किया है। सेखों के विमान को मार गिराने वाले पायलट सलीम बेग मिर्जा ने
भी अपने एक लेख में सेखों की बहादुरी और हुनर की तारीफ की।