वेल्लोर विद्रोह
वेल्लोर की क्रांति ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ़ भारतीय सिपाही आंदोलन का सबसे पहला उदाहरण है। यह आंदोलन 1857 के सिपाही आंदोलन से पहले ही निश्चित किया जा चुका था। यह विद्रोह दक्षिण भारत के वेल्लोर नामक कस्बे में शुरूहुआ था। यह आंदोलन बहुत बड़ा नहीं था लेकिन बहुत भयानक था। इस क्रांति के दौरान क्रांतिकारी वेल्लोर के दुर्ग में घुस गये और उन्होंने ब्रिटिश टुकडियों के सैनिकों को मार ड़ाला व कुछ को घायल कर दिया।
इस क्रांति के पीछे मुख्य कारण यह था कि नवम्बर 1805 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सैनिकों की वर्दी में काफ़ी परिवर्तन कर दिये थे जिनको सैनिकों ने पसन्द नहीं किया और उनकी ये नापसंदगी विद्रोह में बदल गई। सरकार ने हिन्दू सैनिकों को उनके धार्मिक चिन्ह जो वे अपने मस्तक पर लगाते थे लगाने की अनुमति नहीं दी और मुस्लमानों को दाढ़ी व मूँछ हटाने के लिये बाध्य किया गया। इस बात नेसिपाहियों के दिलों में विद्रोह उत्पन्न किया और जब सैनिकों ने सरकार के खिलाफ़ अपना विद्रोह प्रदर्शित किया तोमई 1806 में कुछ विद्रोही सैनिकों को इसके लिये दंडित किया गया। एक हिन्दू और एक मुस्लिम सिपाही को इस अपराध के लिये 900 कोड़े मारे गये, 19 अन्य सिपाहियों को 500 कोड़े मारे गए और इन सब सैनिकों को ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से क्षमा मांगने के लिये बाध्य किया गया।
दूसरी तरफ़ यह आंदोलन 1799 से बंदी बनाये गये टीपू सुल्तान के बेटों को मुक्त करवाने के लिये भी किया गया था। 9 जुलाई 1806 कोटीपू सुल्तान की एक बेटी का विवाह था। इस दिन क्रांति के आयोजन कर्ता में विवाह में शामिल होने के बहाने से उस दुर्ग में एकत्रित हुए। 10 जुलाई कीे आधी रात को सिपाहियों ने दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया और अधिकांंश ब्रिटिश लोगों को मार डाला। सुबह होते ही दुर्ग के ऊपर मैसूर के सुल्तान का झंडा फ़हराया गया। इस घटना में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों ने टीपू सुल्तान के दूसरे पुत्र फ़तेह हैदर को राजा घोषित कर दिया।
लेकिन एक ब्रिटिश अधिकारी वहाँ से भाग गया और उसने नजदीक ही अर्कोट में स्थित ब्रिटिश सेना को इस घटना से अवगत करवा दिया। 9 घंटे बाद हीब्रिटिश अधिकारी सर रोलो गिलेस्पी अपनी घुडसवार सेना के साथ उस दुर्ग में पहुँचा, क्योंकि दुर्ग पर सिपाहियों द्वारा ठीक से सुरक्षा के लिये पहरा नहीं दिया जा रहा था। वहाँ ब्रिटिश सेना व क्रांतिकारियों के बीच भयानक लड़ाई हुई जिसमें लगभग 350 आंदोलन कारी मारे गये व दूसरे 350 घायल हो गये। दूसरे तथ्यों के अनुसार उस लड़ाई में 800 आंदोलनकारी मारे गये थे।
इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने बंदी किये गये शासकों को कलकत्ता भेज दिया। मद्रास के ब्रिटिश ग़र्वनर विलियम बैंटिक ने भारतीय सिपाहियों के सामाजिक व धार्मिक रिवाजों के साथ जो निरोधात्मक नियम ब्रिटिश सरकार ने लगाये थे उनको बंद कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने सिपाही विद्रोह की इस घटना से अच्छा सबक सीख लिया, इसीलिये 1857 की क्रांति के समय सिपाहियों का सामान्य गुस्सा समाप्त हो रहा था।
यह बात भी रोचक है कि वेल्लोर के आंदोलनकारियों ने टीपू सुल्तान के पुत्रों को फ़िर से सत्ता में लाने की योजना बनाई जैसा 1857 की क्रांति ने भारत के सम्राट बहादुर शाह को फ़िर से सत्ता में लाकर मुगल साम्राज्य को एक बार फ़िर से स्थापित करना चाहा था।
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