Tuesday 29 December 2015


आपके जन्मदिन पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं..
आने वाला प्रत्येक नया दिन, इस अवसर पर भगवान जगन्ना महाप्रभु से यही प्रार्थना है, आपके जीवन में अनेकानेक सफलताएँ एवं अपार खुशियाँ
 लेकर आये 





Sunday 27 December 2015


Warm Birthday Wishes to Shri Arun Jaitley 
Ji. 
Wishing you Long Life, Happiness & Good 

Health.


Friday 25 December 2015


I offer my tribute on the birth anniversary of 

Great Indian Revolutionary Shaheed Udham 

Singh. He took the revenge of Jallianwala 

Bagh Massacre

 जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने वालेे महान 

 भारतीय क्रांतिकारी शहीद उधम सिंह जी की जयंती 

पर मैं श्रद्धांजलि प्रदान करता हू।

ਮੈਨੂੰ ਮਹਾਨ ਭਾਰਤੀ ਇਨਕਲਾਬੀ ਜੱਲਿਆ ਵਾਲਾ ਬਾਗ ਦੇ 

ਸਾਕੇ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਵਾਲੇ ਸ਼ਹੀਦ ਊਧਮ ਸਿੰਘ ਦੇ ਜਨਮ 

ਦਿਵਸ 'ਤੇ ਮੈ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ ਭੇਟ ਕਰਦਾ ਹਾਂ


Thursday 24 December 2015

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और हमारे पथ प्रदर्शक "भारत रत्न" श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।  

Issued By :- Sanjeev Kamboj Advocate
Co-opted Member Bar Council Punjab & Haryana


Tuesday 15 December 2015


श्री गुरु तेग बहादुर जी




श्री गुरु तेग बहादुर जीसिखों के नवें गुरू थे। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है

                            "धरम हेत साका जिनि कीआ                                                सीस दीआ पर सिरड न दीआ।"

इस महावाक्य अनुसार गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।
आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे।
धर्म प्रचार
गुरुजी ने धर्म के सत्य ज्ञान के प्रचार-प्रसार एवं लोक कल्याणकारी कार्य के लिए कई स्थानों का भ्रमण किया। आनंदपुर से कीरतपुर, रोपड, सैफाबाद के लोगों को संयम तथा सहज मार्ग का पाठ पढ़ाते हुए वे खिआला (खदल) पहुँचे। यहाँ से गुरुजी धर्म के सत्य मार्ग पर चलने का उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुँचे। कुरुक्षेत्र से यमुना किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुँचे और यहाँ साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया।
यहाँ से गुरुजी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्होंने लोगों के आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए कई रचनात्मक कार्य किए। आध्यात्मिक स्तर पर धर्म का सच्चा ज्ञान बाँटा। सामाजिक स्तर पर चली आ रही रूढ़ियों, अंधविश्वासों की कटु आलोचना कर नए सहज जनकल्याणकारी आदर्श स्थापित किए। उन्होंने प्राणी सेवा एवं परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि लोक परोपकारी कार्य भी किए। इन्हीं यात्राओं के बीच 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ। जो दसवें गुरु- गुरु गोबिन्दसिंहजी बनें।
गुरुजी नित्य प्रति आनंदपुर साहब में आध्यात्मिक आनंद बाँटते, मानव मात्र में नैतिकता, निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का संदेश देते थे। आनंदपुर वस्तुतः आनंदधाम ही था। यहाँ पर सभी लोग वर्ण, रंग, जाति, संप्रदाय के भेदभाव के बिना समता, समानता एवं समरसता का अलौकिक ज्ञान प्राप्त करते थे। गुरुजी शांति, क्षमा, सहनशीलता की मूर्ति थे।
उन्होंने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं 'भै काहू को देत नहि'। नहि भय मानत आन।' वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है।
इधर 27 दिसम्बर सन्‌ 1704 को दोनों छोटे साहिबजादे और जोरावतसिंह व फतेहसिंहजी को दीवारों में चुनवा दिया गया। जब यह हाल गुरुजी को पता चला तो उन्होंने औरंगजेब को एक जफरनामा (विजय की चिट्ठी) लिखा, जिसमें उन्होंने औरगंजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।
8 मई सन्‌ 1705 में 'मुक्तसर' नामक स्थान पर मुगलों से भयानक युद्ध हुआ, जिसमें गुरुजी की जीत हुई। अक्टूबर सन्‌ 1706 में गुरुजी दक्षिण में गए जहाँ पर आपको औरंगजेब की मृत्यु का पता लगा। औरंगजेब ने मरते समय एक शिकायत पत्र लिखा था। हैरानी की बात है कि जो सब कुछ लुटा चुका था, (गुरुजी) वो फतहनामा लिख रहे थे व जिसके पास सब कुछ था वह शिकस्त नामा लिख रहा है। इसका कारण था सच्चाई। गुरुजी ने युद्ध सदैव अत्याचार के विरुद्ध किए थे न कि अपने निजी लाभ के लिए।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद आपने बहादुरशाह को बादशाह बनाने में मदद की। गुरुजी व बहादुरशाह के संबंध अत्यंत मधुर थे। इन संबंधों को देखकर सरहद का नवाब वजीत खाँ घबरा गया। अतः उसने दो पठान गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन पठानों ने गुरुजी पर धोखे से घातक वार किया, जिससे 7 अक्टूबर 1708 में गुरुजी (गुरु गोबिन्द सिंह जी) नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। अंत समय आपने सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा व खुद भी माथा टेका। गुरुजी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरुजी ने सिक्ख बनाया बंदासिंह बहादुर नाम दिया था, सरहद पर आक्रमण किया और अत्याचारियों की ईंट से ईंट बजा दी।
गुरु गोविंदजी के बारे में लाला दौलतराय, जो कि कट्टर आर्य समाजी थे, लिखते हैं 'मैं चाहता तो स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, परमहंस आदि के बारे में काफी कुछ लिख सकता था, परंतु मैं उनके बारे में नहीं लिख सकता जो कि पूर्ण पुरुष नहीं हैं। मुझे पूर्ण पुरुष के सभी गुण गुरु गोविंदसिंह में मिलते हैं।' अतः लाला दौलतराय ने गुरु गोविंदसिंहजी के बारे में पूर्ण पुरुष नामक एक अच्छी पुस्तक लिखी है।
इसी प्रकार मुहम्मद अब्दुल लतीफ भी लिखता है कि जब मैं गुरु गोविंदसिंहजी के व्यक्तित्व के बारे में सोचता हूँ तो मुझे समझ में नहीं आता कि उनके किस पहलू का वर्णन करूँ। वे कभी मुझे महाधिराज नजर आते हैं, कभी महादानी, कभी फकीर नजर आते हैं, कभी वे गुरु नजर आते हैं। सिखों के दस गुरू हैं।


















Saturday 12 September 2015

निवेदन

बिहार विधान सभा के चुनाव आयोजित होने वाले है आप सभी से अनुरोध है कि आप अपने बिहार में रहने वाले रिश्तेदारों से निवेदन करें की वही सभी भाजपा व उसके सहयोगियों दलों के उम्मीदवारों को आपने बहुमूल्य वोट देकर सफल बनायें
🙏आपका निवेदक :-
संजीव कम्बोज
सह - संयोजक भाजपा कानूनी एवं विधायी प्रकोष्ठ पंजाब
मोबाइल नंबर 9814165614

Friday 11 September 2015


जनता ने ये ठाना है, इस बार बिहार में परिवर्तन लाना 

है |



निवेदक :-
संजीव कंबोज सह - संयोजक (राज्य)
भाजपा कानूनी एवं विधायी प्रकोष्ठ पंजाब
मोबाइल नंबर  + 91 9814 16 5614

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी देश के व हमारे बेहतर भविष्य के लिए दिन रात काम कर रहे हैं । लेकिन उनकी आलोचना करने वाले भारत के बेहतर भविष्य में आने वाली बाधायें हैं ।
#ModiBestPM
🙏निवेदक :-
संजीव कम्बोज ( एडवोकेट )
सह - संयोजक भाजपा कानूनी एवं विधायी प्रकोष्ठ ( पंजाब ) मोबाइल नंबर 9814165614

Thursday 10 September 2015

Mobvista to invest $100 million in India by 2018

Mobvista to invest $100 million in India by 2018 Read and Share http://economictimes.indiatimes.com/industry/services/advertising/mobvista-to-invest-100-million-in-india-by-2018/articleshow/48889596.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst via Narendra Modi app http://nm4.in/nmandroidapp

Mobvista to invest $100 million in India by 2018

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Indian economy sees 'firming growth', says OECD

Indian economy sees 'firming growth', says OECD Read and Share http://www.moneycontrol.com/news/economy/indian-economy-sees-firming-growth-says-oecd_2979141.html?utm_source=ref_article via Narendra Modi app http://nm4.in/nmandroidapp

Saturday 5 September 2015

जो वादा किया, निभाया...जो वादा किया, निभाया...

जो वादा किया, निभाया...जो वादा किया, निभाया...
नरेंद्र मोदी जी, अमित शाह जी व समूची पार्टी  के नेतृत्व मे 'एक रैंक एक पेंशन' सरकार ने सैनिकों की 40 साल पुरानी पूरी करने और लागू करने पर कोटी कोटी  धन्यावाद सभी भारतीय सैनिको को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं i
✔ केंद्र सरकार ने पूर्व सैनिकों के लिए वन रैंक वन पेंशन का ऐलान किया।
✔ 1 जुलाई, 2014 से लागू होगा #OROP
✔ चार किस्तों में मिलेगा पैसा, हर पांच साल में पेंशन की समीक्षा होगी।

Friday 4 September 2015


प्रधानमंत्री मुद्रा योजना



मुद्रा बैंक भारत में ८ अप्रैल २०१५ को आरम्भ हुआ। यह मुख्य रूप से सूक्ष्म तथा लघु उद्योगों के वित्तपोषण पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा। मुद्रा बैंक का मतलब है 'माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट्स रिफाइनेंस एजेंसी' (MUDRA)। मुद्रा बैंक का उद्देश्य युवा, शिक्षित और प्रशिक्षित उद्यमियों को मदद देकर मुख्यधारा में लाना है।
विशेषताएँ
इस योजना के तहत छोटे उद्यमियों को कम ब्याज दर पर 50 हजार से 10 लाख रुपये तक का कर्ज दिया जाएगा।
केंद्र सरकार इस योजना पर 20 हजार करोड़ रुपये लगाएग। साथ ही इसके लिए 3000 करोड़ रुपये की क्रेडिट गारंटी रखी गई है।
मुद्रा बैंक छोटे फाइनेंस संस्थानों (माइक्रो फाइनेंस इंस्टिट्यूशन) को री-फाइनेंस करेगा ताकि वे प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत छोटे उद्यमियों को कर्ज दे सकें।
मुद्रा बैंक के तहत अनुसूचित जाति/जनजाति के उद्यमियों को प्राथमिकता पर कर्ज दिए जाएंगे।
इसकी पहुंच का दायरा बढ़ाने के लिए डाक विभाग के विशाल नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाएगा।
मुद्रा बैंक देश भर के 5.77 करोड़ छोटी व्यापार इकाइयों की मदद करेगा। इन्हें अभी बैंक से कर्ज लेने में बहुत मुश्किल होती है।
इस व्यवस्था के तहत तीन तरह के कर्ज दिए जाएंगे : शिशु, किशोर और तरुण।
व्यापार शुरू करने वाले को 'शिशु' श्रेणी का ऋण दिया जाएगा। 'किशोर' श्रेणी के तहत 50 हजार से 5 लाख रुपये तक का ऋण दिया जाएगा। वहीं 'तरुण' श्रेणी के तहत 5 लाख से 10 लाख रुपये का कर्ज दिया जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ji 11 सितंबर को चंडीगढ़ में जनसभा को संबोधित करेंगे आप सब का भाजपा कानूनी एवं विधायी प्रकोष्ठ पंजाब स्वागत करता है

Monday 31 August 2015

PM Modi releases Digital Version of timeless epic Ramcharitmanas http://nm-4.in/1IyXYcN via Narendra Modi app http://nm4.in/nmandroidapp

Thursday 27 August 2015

Smart City Jalandhar

नरेंद्र मोदी जी, अमित शाह जी व समूची पार्टी लीडरशिप को जालंधर को स्मार्ट सिटी चुने जाने के लिय कोटी कोटी धन्यावाद और जालंधर के सभी निवासियों को बहुत बहुत बधाई हो #smartcity

Thursday 13 August 2015

INDIA – UAE TRADE RELATIONS


INTRODUCTION

India and United Arab Emirates (UAE) enjoy strong bonds of friendship founded on Millennia old cultural, religious and economic intercourse between the two regions. People – to- people contacts and barter trade between two regions have existed for centuries. The relationship flourished since the creation of the UAE Federation in 1971 and trade has played a major role in the strengthening the bilateral relationship.

Bilateral Trade
According to Government of India figures, in FY 2014-15, trade between India and UAE crossed US$ 59bn, with Indian exports worth US$ 33.3bn to the UAE and US$ 26bn worth of UAE’s exports to India, thus making UAE India’s one of the top trading partner. Indian businessmen and traders have contributed significantly to the economic fabric of UAE. Indian professionals also occupy important positions in various banks, private companies and business establishments in the country. The unskilled and semi skilled workers from India are a dominant force in the construction industry. The contribution of Indians to the growth of UAE is acknowledged by the rulers and the people of UAE.

Investments from Dubai & Northern Emirates in India

Dubai Ports World: While Dubai itself is a major investment destination, it also has an important and growing presence in India. Dubai Ports (DP) World operates at: Nhava Sheva International Container Terminal Private Limited, Chennai Container Terminal Private Limited and India Gateway Terminal at Cochin. The Rajiv Gandhi Container Terminal in Vallarpadam, developed and operated by Dubai Ports World is the first International Container Trans-shipment Terminal in India. On 1 November 2012, DP World won the contract to build and operate a single berth terminal facility at Nhava Sheva, Mumbai. The US$ 200mn worth facility expected to be operational in 2015 will have an annual handling capacity of 800,000 TEUs


RAK ceramics :RAK ceramics, a USD 1bn global conglomerate with global production of tiles exceeding 3,60,000 sq.m and 1200 pieces of Sanitary ware per day from its 10 state of art plants in UAE has 1 plant each in Bangladesh, China, India, Iran and Sudan.In India, RAK Ceramics has the largest vitrified tile manufacturing plant in Samalkot in Andhra Pradesh with a per day manufacturing capacity of 30, 000sq. m of vitrified tiles and 1500 sanitary ware.
Emaar MGF: Emaar MGF Land Limited is a joint venture between Dubai based Emaar Properties and MGF developments of India. The company commenced operation in India in February, 2005 and is into real estate development with a pan – India presence and operations spanning all key segments of the India real estate industry, namely residential, commercial, retail and hospitality sectors. At present, its focus is on the development of residential projects in Delhi and elsewhere in NCR, Mohali, Hyderabad, Chennai and other key Indian Cities.

TECOM: TECOM investment was established in the year 2005 to build, manage and develop the business parks vertical under Dubai Holding. TECOM business Parks comprises of 10 business parks under five industry clusters across the information and communication technology (ICT), media, education, sciences, as well as manufacturing and logistics sectors. TECOM investment has conceptualized Smart City to develop knowledge industry townships globally. SmartCity Malta and Smart City Kochi are their first two international developments. SmartCity Kochi is a JV between Smart City Dubai and Government of Kerala with 84% and 16% respectively. SmartCity Kochi is a home to knowledge based companies that aim to serve the Indian Continent.

Major Indian Companies in Dubai & Northern Emirates

Many leading Indian companies and banks have an important presence in Dubai. For example, L & T, HCL Infosystems, Nagarjuna Construction Company Limited, Hinduja Group, Danube, Sobha Group, Indian Oil Corporation, Reliance Industries, Essar Group, Bank of Baroda, State Bank of India, IDBI Bank, Union Bank of India, Oriental Bank of Commerce, Punjab National Bank, Indusind Bank, Bank of India, Indian Overseas Bank, HDFC, ICICI, Axis Bank, Andhra Bank, Canara Bank, Corporation Bank etc. RAKFTZ is home to a large number of Indian companies operating in diverse sectors including Pioneer Cement (USD 105 million investment), JBF RAK Polyester Chips and Films (USD 100 million), Eternity Technologies of Al Dobowi Group manufacturing industrial batteries (USD 55 million), Ashok Leyland Bus/Truck Assembly (USD 50 million), Mahindra Emirates Vehicle Armoury (USD 25 million), Dabur India Herbal Products(USD 25 million), RAK Steel Products (USD 25 million), Bosco Aluminium Products (USD 10 million), etc.

Delegation visits from India

Visit of Minister of State Finance: Hon’ble Minister of State for Finance Shri Jayant Sinha visited Dubai from 10 – 12 April, 2015. Hon’ble Minister delivered a keynote speech during the inaugural edition of a new speaker series – UTKARSH Bharat – an initiative of Consulate-General of India in association with the Pan IIM Alumni Network. Further Minister met with Governor of Dubai International Financial Centre and discussed about India’s first smart city – GIFT and also attended two different investment sessions, one with prominent and HNI Emiratis and second session a townhall meeting with 200 potential investors, mainly Indians.
Visit of Telangana delegation: A delegation from Telangana led by Mr. Jupalli KrishnaRao, Hon’ble Minister for Industries, Handloom, Textile visited Dubai from 29th March to 1st April, 2015 to participate in Annual Investment Meet (AIM) 2015 organized by UAE Ministry of economy. During the visit the Minister had meetings with TECOM Smart City Authority and also one to one meetings with investors including Lulu Group, Pure Gold, Varkey Group, SRM Group among others. A dinner networking event was also held to showcase the opportunities in the new formed state of telegana, which was attended by many prominent businessmen and media.
Visit of Honble EAM to UAE: Mrs. Sushma Swaraj, Hon’ble Minister of External Affairsand Overseas Indian Affairs visited UAE on 10th November, 2014 on her first bilateral official visit to the United Arab Emirates. Hon’ble Minister had meetings with His Highness Sheikh Saif Bin Zayed Al Nahyan, Deputy Prime Minister and Minister of Interior of the UAE as well as her host, His Highness Sheikh Abdullah Bin Zayed Al Nahyan, Foreign Minister of UAE. The Hon’ble Minister met representatives of the Indian community at a reception hosted by the Embassy of India, in her honour. His Highness Sheikh Nahyan Bin Mubarak Al Nahyan, Minister for Culture, Youth Affairs and Social Development also attended the event.
Vibrant Gujarat Delegation: A delegation led by Mr. BB Swain, MD, GIDC,for a road show to promote Vibrant Gujarat Summit to be held from 11 – 13 Jan 2015 at Gandhinagar, Gujarat. This was second leg of their tour that began with Qatar. On 7th September, the delegation interacted with Indian investors over Lunch and Dinner organized by IBPC Dubai and on 8th they met with a delegation from Dubai Chamber of Commerce where various avenues of trade promotion between Gujarat and Dubai were discussed.
Madhya Pradesh Delegation: A 10-member high level delegation fromPradesh (GoMP) led by HE Mr. Shivraj Singh Chauhan, Hon’ble Chief Minister of MP visited UAE from 20 – 22 August,2014. The delegation that included senior ministers from the state such as HE Ms Yashodhara Raje Scindia, Minister of Industries and Commerce, HE Sh Kailash Vijayvargiya, Hon’ble Minister for Urban Administration & Housing-Environment and HE Mr. Umashanker Gupta, Minister of HRD, and other senior bureaucrats were on a road-show to promote the Global Investors Summit held at Indore from 8 – 10 October, 2014 and to attract investments to Madhya Pradesh.
GIFT City Delegation: A 5 member delegation from Government of Gujarat (GoG), headed by Shri Saurabh Dalal, Minister for Finance, Energy and Petrochemicals, Mines Minerals, Cottage Industries, Salt Industries, Printing and Stationery, Planning, Tourism, Civil aviation, Labour and Employment visited Dubai from 8 – 10 August, 2014. The main objective of the delegation’s visit was to study the infrastructural, legal, financial and other necessary frameworks that support the successful operation of more than 25 free zones in Dubai. This comes in the backdrop of Gujarat’s efforts to initiate a project called the GIFT (Gujarat International Financial Tech) city, near Ahmadabad, (in partnership with IL&FS).
Arabplast: The 12th edition of Arab International Plastics & Rubber Industry Trade Show (Arabplast) was held in Dubai from 10 – 13 January, 2015. The Indian Pavilion comprised of more than 100 companies participating under the aegis of the Plastics Exports Promotion Council (Plexconcil).
Gulfood: The 20th edition of Gulfood, the world’s largest annual exhibition in food and hospitality was held in Dubai from 8 – 12 February, 2015. The exhibition hosted over more than 4800 companies and government organizations from various countries. The Indian pavilion saw participation of more than 300 companies under the aegis of Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority (APEDA), Ministry of Food Processing Industries (MoFPI) and trade promotion councils including Cashew Export Promotion Council, Tea Board also participated in the event. The Indian Pavilion was one of the biggest pavilions in the exhibition. The pavilion promoted rice – Basmati and non -Basmati, herbs, spices, processed food products, poultry, meat, dairy products, confectionary, juices, chocolates, ready to eat foodstuff, varieties of tea etc.

Exhibitions & Events


India – UAE Medical Partnership: The first edition of India – UAE Exhibition organized by Ministry of Tourism in association with Indian Consulate, Dubai and Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry, (FICCI), New Delhi was held in Dubai from 9th – 10th April, 2015 at Hotel Ritz Carlton, DIFC. The exhibition featured 25 leading multi-specialty hospitals and health care institutions as well as centers for alternative healthcare like Ayurveda, Yoga, Unani, Siddha & Homoeopathy. As part of Concurrent CME program(Continuing Medical education) accredited by Dubai Health Authority , 19 eminent speakers from India gave presentations in streams including Cardiology, Oncology and Bone Marrow Transplant, Organ Transplant, IVF, Joint Replacement, Bariatric Surgery, Neurosurgery. The event was supported by local UAE organizations including Dubai Health Authority, Sharjah Healthcare City, IBPC-Dubai, IBPC-Sharjah and Air India & Air Arabia was the Official Airline Partner of the show.

Monday 10 August 2015

अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त खुदीराम बोस की पुण्यतिथि‬ पर शत् शत् नमन |


खुदीराम बोस (बांग्ला: ক্ষুদিরাম বসু, अंग्रेजी: Khudiram Bose, मलयालम: ഖുദീരാം ബോസ്, मराठी
खुदीराम बोस, जन्म: १८८९ - मृत्यु : १९०८) भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र १९ साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि खुदीराम से पूर्व १७ जनवरी १८७२ को ६८ कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय १३ वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नम्बर ५०वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढी कसकर पकड ली और तब तक नहीं छोडी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गये बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था। (देखें सरफरोशी की तमन्ना भाग ४ पृष्ठ १३)                                                                                                                                                                               जन्म व प्रारम्भिक जीवन
खुदीराम का जन्म ३ दिसंबर १८८९ को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गाँव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहाँ हुआ था। उनकीमाता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी औरस्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े। छात्र जीवन से ही ऐसी लगन मन में लिये इस नौजवान ने हिन्दुस्तान पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए पहला बम फेंका और मात्र १९ वें वर्ष में हाथ में भगवद गीता लेकर हँसते - हँसते फाँसी के फन्दे पर चढकर इतिहास रच दिया।

क्रान्ति के क्षेत्र में

स्कूल छोडने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। १९०५ में बंगाल के विभाजन (बंग - भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।

राजद्रोह के आरोप से मुक्ति

फरवरी १९०६ में मिदनापुर में एक औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रदर्शनी देखने के लिये आसपास के प्रान्तों से सैंकडों लोग आने लगे। बंगाल के एक क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक ज्वलंत पत्रक की प्रतियाँ खुदीरामने इस प्रदर्शनी में बाँटी। एक पुलिस वाला उन्हें पकडने के लिये भागा। खुदीराम ने इस सिपाही के मुँह पर घूँसा मारा और शेष पत्रक बगल में दबाकर भाग गये। इस प्रकरण में राजद्रोह के आरोप में सरकार ने उन पर अभियोग चलाया परन्तु गवाही न मिलने से खुदीराम निर्दोष छूट गये।
इतिहासवेत्ता मालती मलिक के अनुसार २८ फरवरी १९०६ को खुदीराम बोस गिरफ्तार कर लिये गये लेकिन वह कैद से भाग निकले। लगभग दो महीने बाद अप्रैल में वह फिर से पकड़े गये। १६ मई १९०६ को उन्हें रिहा कर दिया गया।
६ दिसंबर १९०७ को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया परन्तु गवर्नर बच गया। सन १९०८ में उन्होंने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया लेकिन वे भी बच निकले।

न्यायाधीश किंग्जफोर्ड को मारने की योजना

मिदनापुर में ‘युगांतर’ नाम की क्रांतिकारियों की गुप्त संस्था के माध्यम से खुदीराम क्रांतिकार्य पहले ही में जुट चुके थे। १९०५ में लॉर्ड कर्जन ने जब बंगाल का विभाजन किया तो उसके विरोध में सडकों पर उतरे अनेकों भारतीयों को उस समय के कलकत्ता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने क्रूर दण्ड दिया। अन्य मामलों में भी उसने क्रान्तिकारियों को बहुत कष्ट दिया था। इसके परिणामस्वरूप किंग्जफोर्ड को पदोन्नति देकर मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश के पद पर भेजा। ‘युगान्तर’ समिति कि एक गुप्त बैठक में किंग्जफोर्ड को ही मारने का निश्चय हुआ। इस कार्य हेतु खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार चाकी का चयन किया गया। खुदीरामको एक बम और पिस्तौल दी गयी। प्रफुल्लकुमार को भी एक पिस्तौल दी गयी। मुजफ्फरपुर में आने पर इन दोनों ने सबसे पहले किंग्जफोर्ड के बँगले की निगरानी की। उन्होंने उसकी बग्घी तथा उसके घोडे का रंग देख लिया। खुदीराम तो किंग्जफोर्ड को उसके कार्यालय में जाकर ठीक से देख भी आए।

अंग्रेज अत्याचारियों पर पहला बम

३० अप्रैल १९०८ को ये दोनों नियोजित काम के लिये बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बँगले के बाहर घोडागाडी से उसके आने की राह देखने लगे। बँगले की निगरानी हेतु वहाँ मौजूद पुलिस के गुप्तचरों ने उन्हें हटाना भी चाहा परन्तु वे दोनाँ उन्हें योग्य उत्तर देकर वहीं रुके रहे। रात में साढे आठ बजे के आसपास क्लब से किंग्जफोर्ड की बग्घी के समान दिखने वाली गाडी आते हुए देखकर खुदीराम गाडी के पीछे भागने लगे। रास्ते में बहुत ही अँधेरा था। गाडी किंग्जफोर्ड के बँगले के सामने आते ही खुदीराम ने अँधेरे में ही आगे वाली बग्घी पर निशाना लगाकर जोर से बम फेंका। हिन्दुस्तान में इस पहले बम विस्फोट की आवाज उस रात तीन मील तक सुनाई दी और कुछ दिनों बाद तो उसकी आवाज इंग्लैंड तथा योरोप में भी सुनी गयी जब वहाँ इस घटना की खबर ने तहलका मचा दिया। यूँ तो खुदीराम ने किंग्जफोर्ड की गाडी समझकर बम फेंका था परन्तु उस दिन किंग्जफोर्ड थोडी देर से क्लब से बाहर आने के कारण बच गया। दैवयोग से गाडियाँ एक जैसी होने के कारण दो यूरोपियन स्त्रियों को अपने प्राण गँवाने पडे। खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार दोनों ही रातों - रात नंगे पैर भागते हुए गये और २४ मील दूर स्थित वैनी रेलवे स्टेशन पर जाकर ही विश्राम किया।

गिरफ्तारी

अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गये। ११ अगस्त १९०८ को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दे दी गयी। उस समय उनकी उम्र मात्र १८ साल + थी।

फाँसी का आलिंगन

फाँसी के तख्ते पर खुदीराम का कार्टून चित्र
दूसरे दिन सन्देह होने पर प्रफुल्लकुमार चाकी को पुलिस पकडने गयी, तब उन्होंने स्वयं पर गोली चलाकर अपने प्राणार्पण कर दिये। खुदीराम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी का अन्त निश्चित ही था। ११ अगस्त १९०८ को भगवद्गीता हाथ में लेकर खुदीराम धैर्य के साथ खुशी - खुशी फाँसी चढ गये। किंग्जफोर्ड ने घबराकर नौकरी छोड दी और जिन क्रांतिकारियों को उसने कष्ट दिया था उनके भय से उसकी शीघ्र ही मौत भी हो गयी।
फाँसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गये कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। इतिहासवेत्ता शिरोल के अनुसार बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिये वह वीर शहीद और अनुकरणीय हो गया। विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया। कई दिन तक स्कूल कालेज सभी बन्द रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था।

स्मारक का उद्घाटन

क्रान्तिवीर खुदीराम बोस का स्मारक बनाने की योजना कानपुर के युवकों ने बनाई और उनके पीछे असंख्य युवक इस स्वतन्त्रता-यज्ञ में आत्मार्पण करने के लिये आगे आये। इस प्रकार के अनेक क्रान्तिकारियों के त्याग की कोई सीमा नहीं थी।

लोकप्रियता

मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फाँसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फाँसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 18 वर्ष थी। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक ख़ास किस्म की धोती बुनने लगे।
उनकी शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और उनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। उनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जिन्हें बंगाल के लोक गायक आज भी गाते हैं।

इन्हें भी देखें

Saturday 8 August 2015

काकोरी काण्ड में अहम भूमिका और मां भारती के 

चरणों में प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों को विनम्र 

श्रद्धांजलि


काकोरी काण्ड (अंग्रेजी: Kakori conspiracy) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राजभयंकर युद्ध छेड़ने की खतरनाक मंशा से हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी जो ९ अगस्त १९२५ को घटी।[1] इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चारमाउज़र पिस्तौल काम में लाये गये थे।[2] इन पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुन्दा लगाकर रायफल की तरह उपयोग किया जा सकता था। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था।
क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी। इस योजनानुसार दल के काकोरी-काण्ड के क्रान्तिकारी ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने ९ अगस्त१९२५ को लखनऊ जिले  के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी "आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन" को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डितचन्द्रशेखर आज़ाद व ६ अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंहको मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में १६ अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम ४ वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था।

अनुक्रम

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काकोरी काण्ड से पूर्व का परिदृश्य

हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ की ओर से प्रकाशित इश्तहार और उसके संविधान को लेकर बंगाल पहुँचे दल के दोनों नेता- शचीन्द्रनाथ सान्याल बाँकुरा में उस समय गिरफ्तार कर लिये गये जब वे यह इश्तहार अपने किसी साथी को पोस्ट करने जा रहे थे। इसी प्रकार योगेशचन्द्र चटर्जी कानपुर से पार्टी की मीटिंग करके जैसे ही हावड़ा स्टेशन पर ट्रेन से उतरे कि एच०आर०ए० के संविधान की ढेर सारी प्रतियों के साथ पकड़ लिये गये और उन्हें हजारीबागजेल में बन्द कर दिया गया।

सरकारी खजाना लूटने का निर्णय

दोनों प्रमुख नेताओं के गिरफ्तार हो जाने से राम प्रसाद 'बिस्मिल' के कन्धों पर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बंगाल के क्रान्तिकारी सदस्यों का उत्तरदायित्व भी आ गया। बिस्मिल का स्वभाव था कि वे या तो किसी काम को हाथ में लेते न थे और यदि एक बार काम हाथ में ले लिया तो उसे पूरा किये बगैर छोड़ते न थे। पार्टी के कार्य हेतु धन की आवश्यकता पहले भी थी किन्तु अब तो वह आवश्यकता और भी अधिक बढ गयी थी। कहीं से भी धन प्राप्त होता न देख उन्होंने ७ मार्च १९२५ को बिचपुरी तथा २४ मई १९२५ को द्वारकापुर में दो राजनीतिक डकैतियाँ डालीं तो परन्तु उनमें कुछ विशेष धन उन्हें प्राप्त न हो सका।
इन दोनों डकैतियों में एक-एक व्यक्ति मौके पर ही मारा गया। इससे बिस्मिल की आत्मा को अत्यधिक कष्ट हुआ। आखिरकार उन्होंने यह पक्का निश्चय कर लिया कि वे अब केवल सरकारी खजाना ही लूटेंगे, हिन्दुस्तान के किसी भी रईस के घर डकैती बिल्कुल न डालेंगे।

ऐतिहासिक रेल डकैती

काकोरी काण्ड में प्रयुक्त माउजर की फोटोऐसे चार माउजर इस ऐक्शन में प्रयोग किये गये थे।
८ अगस्त को राम प्रसाद 'बिस्मिल' के घर पर हुई एक इमर्जेन्सी मीटिंग में निर्णय लेकर योजना बनी और अगले ही दिन ९ अगस्त १९२५ को शाहजहाँपुर शहर के रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल १० लोग, जिनमें शाहजहाँपुर से बिस्मिल के अतिरिक्त अशफाक उल्ला खाँ, मुरारी शर्मा तथा बनवारी लाल, बंगाल से राजेन्द्र लाहिडी, शचीन्द्रनाथ बख्शी तथा केशव चक्रवर्ती (छद्मनाम), बनारस से चन्द्रशेखर आजाद तथा मन्मथनाथ गुप्त एवं औरैया से अकेले मुकुन्दी लाल शामिल थे; ८ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर रेलगाड़ी में सवार हुए।

जर्मनी के माउजरों का प्रयोग

इन क्रान्तिकारियों के पास पिस्तौलों के अतिरिक्त जर्मनी के बने चार माउजर भी थे जिनके बट में कुन्दा लगा लेने से वह छोटी आटोमेटिक रायफल की तरह लगता था और सामने वाले के मन में भय पैदा कर देता था। इन माउजरों की मारक क्षमता भी अधिक होती थी उन दिनों ये माउजर आज की ए०के०-४७ रायफल की तरह चर्चित हुआ करते थे।लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर जैसे ही गाड़ी आगे बढी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और गार्ड के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। पहले तो उसे खोलने की कोशिश की गयी किन्तु जब वह नहीं खुला तो अशफाक उल्ला खाँ ने अपना माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दिया और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गए।

असावधानी से दुर्घटना

मन्मथनाथ गुप्त ने उत्सुकतावश माउजर का ट्रैगर दबा दिया जिससे छूटी गोली अहमद अली नाम के मुसाफिर को लग गयी। वह मौके पर ही ढेर हो गया। शीघ्रतावश चाँदी के सिक्कों व नोटों से भरे चमड़े के थैले चादरों में बाँधकर वहाँ से भागने में एक चादर वहीं छूट गई। अगले दिन अखबारों के माध्यम से यह खबर पूरे संसार में फैल गयी। ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन डकैती को गम्भीरता से लिया और सी०आई०डी० इंस्पेक्टर तसद्दुक हुसैन के नेतृत्व में स्कॉटलैण्ड की सबसे तेज तर्रार पुलिस को इसकी जाँच का काम सौंप दिया।

गिरफ्तारी और मुकदमा

खुफिया प्रमुख खान बहादुर तसद्दुक हुसैन ने पूरी छानबीन और तहकीकात करके बरतानिया सरकार को जैसे ही इस बात की पुष्टि की कि काकोरी ट्रेन डकैती क्रान्तिकारियों का एक सुनियोजित षड्यन्त्र है, पुलिस ने काकोरी काण्ड के सम्बन्ध में जानकारी देने व षड्यन्त्र में शामिल किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करवाने के लिये इनाम की घोषणा के साथ इश्तिहार सभी प्रमुख स्थानों पर लगा दिये जिसका परिणाम यह हुआ कि पुलिस को घटनास्थल पर मिली चादर में लगे धोबी के निशान से इस बात का पता चल गया कि चादर शाहजहाँपुर के किसी व्यक्ति की है। शाहजहाँपुर के धोबियों से पूछने पर मालूम हुआ कि चादर बनारसीलाल की है। बिस्मिल के साझीदार बनारसीलाल से मिलकर पुलिस ने इस डकैती का सारा भेद प्राप्त कर लिया। पुलिस को उससे यह भी पता चल गया कि ९ अगस्त १९२५ को शाहजहाँपुर से राम प्रसाद 'बिस्मिल' की पार्टी के कौन-कौन लोग शहर से बाहर गये थे और वे कब-कब वापस आये? जब खुफिया तौर से इस बात की पूरी पुष्टि हो गई कि राम प्रसाद 'बिस्मिल', जो हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ (एच०आर०ए०) का लीडर था, उस दिन शहर में नहीं था तो २६ सितम्बर १९२५ की रात में बिस्मिल के साथ समूचे हिन्दुस्तान से ४० लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।

गिरफ़्तार व्यक्ति

इस ऐतिहासिक मामले में ४० व्यक्तियों को भारत भर से गिरफ्तार[3] किया गया था। गिरफ्तारी के स्थान के साथ उनके नाम इस प्रकार हैं:
  1. चन्द्रधर जौहरी
  2. चन्द्रभाल जौहरी
  1. शीतला सहाय
  2. ज्योतिशंकर दीक्षित
  3. भूपेंद्रनाथ सान्याल
  • उरई से
  1. वीरभद्र तिवारी
  1. मन्मथनाथ गुप्त
  2. दामोदरस्वरूप सेठ
  3. रामनाथ पाण्डे
  4. देवदत्त भट्टाचार्य
  5. इन्द्रविक्रम सिंह
  6. मुकुन्दी लाल
  1. शचीन्द्रनाथ सान्याल
  2. योगेशचन्द्र चटर्जी
  3. राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी
  4. शरतचन्द्र गुहा
  5. कालिदास बोस
  1. बाबूराम वर्मा
  1. भैरों सिंह
  1. प्रणवेशकुमार चटर्जी
  1. रामदुलारे त्रिवेदी
  2. गोपी मोहन
  3. राजकुमार सिन्हा
  4. सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य
  1. मोहनलाल गौतम
  1. हरनाम सुन्दरलाल
  1. गोविंदचरण कार
  2. शचीन्द्रनाथ विश्वास
  1. शिवचरण लाल शर्मा
  1. विष्णुशरण दुब्लिश
  1. रामकृष्ण खत्री
  1. बनवारी लाल
  1. रामप्रसाद बिस्मिल
  2. बनारसी लाल
  3. लाला हरगोविन्द
  4. प्रेमकृष्ण खन्ना
  5. इन्दुभूषण मित्रा
  6. ठाकुर रोशन सिंह
  7. रामदत्त शुक्ला
  8. मदनलाल
  9. रामरत्न शुक्ला

बाद में गिरफ़्तार

फरार क्रान्तिकारियों में से दो को पुलिस ने बाद में गिरफ़्तार किया था। उनके नाम व स्थान निम्न हैं: [4]
  1. अशफाक उल्ला खाँ
  1. शचीन्द्रनाथ बख्शी
उपरोक्त ४० व्यक्तियों में से तीन लोग शचीन्द्रनाथ सान्याल बाँकुरा में, योगेशचन्द्र चटर्जी हावडा में तथा राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी दक्षिणेश्वर बम विस्फोट मामले में कलकत्ता से पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे और दो लोग अशफाक उल्ला खाँ और शचीन्द्रनाथ बख्शी को तब गिरफ्तार किया गया जब मुख्य काकोरी षड्यन्त्र केस का फैसला हो चुका था। इन दोनों पर अलग से पूरक मुकदमा दायर किया गया।

दस में से पाँच फरार

काकोरी-काण्ड में केवल १० लोग ही वास्तविक रूप से शामिल हुए थे, पुलिस की ओर से उन सभी को भी इस केस में नामजद किया गया। इन १० लोगों में से पाँच - चन्द्रशेखर आजाद, मुरारी शर्मा, केशव चक्रवर्ती (छद्मनाम), अशफाक उल्ला खाँ व शचीन्द्र नाथ बख्शी को छोड़कर, जो उस समय तक पुलिस के हाथ नहीं आये, शेष सभी व्यक्तियों पर सरकार बनाम राम प्रसाद बिस्मिल व अन्य के नाम से ऐतिहासिक मुकदमा चला और उन्हें ५ वर्ष की कैद से लेकर फाँसी तक की सजा हुई। फरार अभियुक्तों के अतिरिक्त जिन-जिन क्रान्तिकारियों को एच० आर० ए० का सक्रिय कार्यकर्ता होने के सन्देह में गिरफ्तार किया गया था उनमें से १६ को साक्ष्य न मिलने के कारण रिहा कर दिया गया। स्पेशल मजिस्टेट ऐनुद्दीन ने प्रत्येक क्रान्तिकारी की छवि खराब करने में कोई कसर बाकी नहीं रक्खी और केस को सेशन कोर्ट में भेजने से पहले ही इस बात के पक्के सबूत व गवाह एकत्र कर लिये थे ताकि बाद में यदि अभियुक्तों की तरफ से कोई अपील भी की जाये तो इनमें से एक भी बिना सजा के छूटने न पाये।

मेरा रँग दे बसन्ती चोला

लखनऊ जेल में काकोरी षड्यन्त्र के सभी अभियुक्त कैद थे। केस चल रहा था इसी दौरान बसन्त पंचमी का त्यौहार आ गया। सब क्रान्तिकारियों ने मिलकर तय किया कि कल बसन्त पंचमी के दिन हम सभी सर पर पीली टोपी और हाथ में पीला रूमाल लेकर कोर्ट चलेंगे। उन्होंने अपने नेता राम प्रसाद 'बिस्मिल' से कहा- "पण्डित जी! कल के लिये कोई फड़कती हुई कविता लिखिये, उसे हम सब मिलकर गायेंगे।" अगले दिन कविता तैयार थी[5];
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....

इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला,
यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला;
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,
किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला।

मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....

रँग दे बसन्ती में भगतसिंह का योगदान

अमर शहीद भगत सिंह जिन दिनों लाहौर जेल में बन्द थे तो उन्होंने इस गीत में ये पंक्तियाँ और जोड़ी थीं:
इसी रंग में बिस्मिल जी ने "वन्दे-मातरम्" बोला,
यही रंग अशफाक को भाया उनका दिल भी डोला;
इसी रंग को हम मस्तों ने, हम मस्तों ने;
दूर फिरंगी को करने को, को करने को;
लहू में अपने घोला।

मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....

माय! रँग दे बसन्ती चोला....
हो माय! रँग दे बसन्ती चोला....
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....

सरफरोशी की तमन्ना

राम प्रसाद 'बिस्मिल' की यह गज़ल[6] क्रान्तिकारी जेल से पुलिस की लारी में अदालत जाते हुए, अदालत में मजिस्ट्रेट को चिढाते हुए व अदालत से लौटकर वापस जेल आते हुए कोरस के रूप में गाया करते थे। बिस्मिल के बलिदान के बाद तो यह रचना सभी क्रान्तिकारियों का मन्त्र बन गयी[7]। जितनी रचना यहाँ दी जा रही है वे लोग उतनी ही गाते थे।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए-क़ातिल में है !

वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ !
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है !

खीँच कर लाई है हमको क़त्ल होने की उम्म्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-क़ातिल में है !

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत हम तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है !

अब न अगले बल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,
सिर्फ मिट जाने की हसरत अब दिले-'बिस्मिल' में है !

पूरक मुकदमा और अपील

पाँच फरार क्रान्तिकारियों में अशफाक उल्ला खाँ को दिल्ली और शचीन्द्र नाथ बख्शी को भागलपुर से पुलिस ने उस समय गिरफ्तार किया जब काकोरी-काण्ड के मुख्य मुकदमे का फैसला सुनाया जा चुका था। स्पेशल जज जे० आर० डब्लू० बैनेट की अदालत में काकोरी षद्यन्त्र का पूरक मुकदमा दर्ज हुआ और १३ जुलाई १९२७ को इन दोनों पर भी सरकार के विरुद्ध साजिश रचने का संगीन आरोप लगाते हुए अशफाक उल्ला खाँ को फाँसी तथाशचीन्द्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गयी।

सरकारी वकील लेने से इनकार

सेशन जज के फैसले के खिलाफ १८ जुलाई १९२७ को अवध चीफ कोर्ट में अपील दायर की गयी। चीफ कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर लुइस शर्ट और विशेष न्यायाधीश मोहम्मद रजा के सामने दोनों मामले पेश हुए। जगतनारायण 'मुल्ला' को सरकारी पक्ष रखने का काम सौंपा गया जबकि सजायाफ्ता क्रान्तिकारियों की ओर से के०सी० दत्त, जयकरणनाथ मिश्र व कृपाशंकर हजेला ने क्रमशः राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह व अशफाक उल्ला खाँ की पैरवी की। राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने अपनी पैरवी खुद की क्योंकि सरकारी खर्चे पर उन्हें लक्ष्मीशंकर मिश्र नाम का एक बड़ा साधारण-सा वकील दिया गया था जिसको लेने से उन्होंने साफ मना कर दिया।

सफाई की जोरदार बहस

बिस्मिल ने चीफ कोर्ट के सामने जब धाराप्रवाह अंग्रेजी में फैसले के खिलाफ बहस की तो सरकारी वकील जगतनारायण मुल्ला जी बगलें झाँकते नजर आये। इस पर चीफ जस्टिस लुइस शर्टस् को बिस्मिल से अंग्रेजी में यह पूछना पड़ा - "मिस्टर रामप्रसाड ! फ्रॉम भिच यूनीवर्सिटी यू हैव टेकेन द डिग्री ऑफ ला ?" (राम प्रसाद ! तुमने किस विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली ?) इस पर बिस्मिल ने हँस कर चीफ जस्टिस को उत्तर दिया था - "एक्सक्यूज मी सर ! ए किंग मेकर डजन्ट रिक्वायर ऐनी डिग्री।" (क्षमा करें महोदय ! सम्राट बनाने वाले को किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती।)

मुल्ला जी की किरकिरी

काकोरी काण्ड का मुकदमा लखनऊ में चल रहा था। पण्डित जगतनारायण मुल्ला सरकारी वकील के साथ उर्दू के शायर भी थे। उन्होंने अभियुक्तों के लिए "मुल्जिमान" की जगह "मुलाजिम" शब्द बोल दिया। फिर क्या था पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने तपाक से उन पर ये चुटीली फब्ती कसी: "मुलाजिम हमको मत कहिये, बड़ा अफ़सोस होता है; अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाए हैं। पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से; कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।" उनके कहने का मतलब स्पष्ठ था कि मुलाजिम वे (बिस्मिल) नहीं, मुल्ला जी हैं जो सरकार से तनख्वाह पाते हैं। वे (बिस्मिल आदि) तो राजनीतिक बन्दी हैं अत: उनके साथ तमीज से पेश आयें। साथ ही यह ताकीद भी की कि वे समुद्र तक की लहरें अपने दुस्साहस से पलटने का दम रखते हैं; मुकदमे की बाजी पलटना कौन चीज? इतना बोलने के बाद किसकी हिम्मत थी जो उनके आगे ठहरता। मुल्ला जी को पसीने छूट गये और उन्होंने कन्नी काटने में ही भलाई समझी। वे चुपचाप पिछले दरवाजे से खिसक लिये। फिर उस दिन उन्होंने कोई जिरह की ही नहीं। ऐसे हाजिरजबाब थे बिस्मिल!

बिस्मिल की बहस से सनसनी

बिस्मिल द्वारा की गयी सफाई की बहस से सरकारी तबके में सनसनी फैल गयी। मुल्ला जी ने सरकारी वकील की हैसियत से पैरवी करने में आनाकानी की। अतएव अदालत ने बिस्मिल की १८ जुलाई १९२७ को दी गयी स्वयं वकालत करने की अर्जी खारिज कर दी। उसके बाद उन्होंने ७६ पृष्ठ की तर्कपूर्ण लिखित बहस पेश की जिसे देखकर जजों ने यह शंका व्यक्त की कि यह बहस बिस्मिल ने स्वयं न लिखकर किसी विधिवेत्ता से लिखवायी है। अन्ततोगत्वा उन्हीं लक्ष्मीशंकर मिश्र को बहस करने की इजाजत दी गयी जिन्हें लेने से बिस्मिल ने मना कर दिया था। यह भी अदालत और सरकारी वकील जगतनारायण मुल्ला की मिली भगत से किया गया। क्योंकि अगर बिस्मिल को पूरा मुकदमा खुद लडने की छूट दी जाती तो सरकार निश्चित रूप से मुकदमा हार जाती।

काकोरी काण्ड का अन्तिम निर्णय

काकोरी काण्ड के चार अमर बलिदानी: (बायें से) राजेन्द्र लाहिडी, अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' एवं ठाकुर रोशनसिंह
२२ अगस्त १९२७ को जो फैसला सुनाया गया उसके अनुसार राम प्रसाद बिस्मिलराजेन्द्रनाथ लाहिड़ी वअशफाक उल्ला खाँ को आई०पी०सी० की दफा १२१(ए) व १२०(बी) के अन्तर्गत आजीवन कारावास तथा ३०२ व ३९६ के अनुसार फाँसी एवं ठाकुर रोशन सिंह को पहली दो दफाओं में ५+५ कुल १० वर्ष की कड़ी कैद तथा अगली दो दफाओं के अनुसार फाँसी का हुक्म हुआ। शचीन्द्रनाथ सान्याल, जब जेल में थे तभी लिखित रूप से अपने किये पर पश्चाताप प्रकट करते हुए भविष्य में किसी भी क्रान्तिकारी कार्रवाई में हिस्सा न लेने का वचन दे चुके थे जिसके आधार पर उनकी उम्र-कैद बरकरार रही। उनके छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल व बनवारी लाल ने अपना-अपना जुर्म कबूल करते हुए कोर्ट की कोई भी सजा भुगतने की अण्डरटेकिंग पहले ही दे रखी थी इसलिये उन्होंने अपील नहीं की और दोनों को ५-५ वर्ष की सजा के आदेश यथावत रहे। चीफ कोर्ट में अपील करने के बावजूद योगेशचन्द्र चटर्जी, मुकुन्दी लाल व गोविन्दचरण कार की सजायें १०-१० वर्ष से बढाकर उम्र-कैद में बदल दी गयीं। सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य व विष्णुशरण दुब्लिश की सजायें भी ७ वर्ष से बढाकर १० वर्ष कर दी गयी। रामकृष्ण खत्री को भी १० वर्ष के कठोर कारावास की सजा बरकरार रही।[8] खूबसूरत हैण्डराइटिंग में लिखकर अपील देने के कारण केवल प्रणवेश चटर्जी की सजा को ५ वर्ष से घटाकर ४ वर्ष कर दिया गया। इस काण्ड में सबसे कम सजा (३ वर्ष) रामनाथ पाण्डेय[9] को हुई। मन्मथनाथ गुप्त, जिनकी गोली से मुसाफिर मारा गया, की सजा बढाकर १४ वर्ष कर दी गयी[10]। एक अन्य अभियुक्त राम दुलारे त्रिवेदी को इस मुकदमें में पाँच वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी।[8]

क्षमादान के प्रयास

अवध चीफ कोर्ट का फैसला आते ही यह खबर दावानल की तरह समूचे हिन्दुस्तान में फैल गयी। ठाकुर मनजीत सिंह राठौर ने सेण्ट्रल लेजिस्लेटिव कौन्सिल में काकोरी काण्ड के चारो मृत्यु-दण्ड प्राप्त कैदियों की सजायें कम करके आजीवन कारावास (उम्र-कैद) में बदलने का प्रस्ताव पेश किया। कौन्सिल के कई सदस्यों ने सर विलियम मोरिस को, जो उस समय संयुक्त प्रान्त के गवर्नर हुआ करते थे, इस आशय का एक प्रार्थना-पत्र भी दिया कि इन चारो की सजाये-मौत माफ कर दी जाये परन्तु उसने उस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। सेण्ट्रल कौन्सिल के ७८ सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिण्डले वुड को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया जिस पर प्रमुख रूप से पं० मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, एन० सी० केलकर, लाला लाजपत राय, गोविन्द वल्लभ पन्त आदि ने अपने हस्ताक्षर किये थे किन्तु वायसराय पर उसका भी कोई असर न हुआ।

मालवीय जी के प्रयास विफल

इसके बाद मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में पाँच व्यक्तियों का एक प्रतिनिधि मण्डल शिमला जाकर वायसराय से दोबारा मिला और उनसे यह प्रार्थना की कि चूँकि इन चारो अभियुक्तों ने लिखित रूप में सरकार को यह वचन दे दिया है कि वे भविष्य में इस प्रकार की किसी भी गतिविधि में हिस्सा न लेंगे और उन्होंने अपने किये पर पश्चाताप भी प्रकट किया है अतः उच्च न्यायालय के निर्णय पर पुनर्विचार किया जा सकता है किन्तु वायसराय ने उन्हें साफ मना कर दिया।

प्रिवी कौन्सिल में भी अपील खारिज

अन्ततः बैरिस्टर मोहन लाल सक्सेना ने प्रिवी कौन्सिल में क्षमादान की याचिका के दस्तावेज तैयार करके इंग्लैण्ड के विख्यात वकील एस० एल० पोलक के पास भिजवाये किन्तु लन्दन के न्यायाधीशों व सम्राट के वैधानिक सलाहकारों ने उस पर यही दलील दी कि इस षड्यन्त्र का सूत्रधार राम प्रसाद 'बिस्मिल' बड़ा ही खतरनाक और पेशेवर अपराधी है उसे यदि क्षमादान दिया गया तो वह भविष्य में इससे भी बड़ा और भयंकर काण्ड कर सकता है। उस स्थिति में बरतानिया सरकार को हिन्दुस्तान में हुकूमत करना असम्भव हो जायेगा। आखिरकार नतीजा यह हुआ कि प्रिवी कौन्सिल में भेजी गयी क्षमादान की अपील भी खारिज हो गयी।

इन्हें भी देखें