Monday 12 June 2017


      भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्त्त हिंदू महासभा के सह-संस्थापक 
गणेश दामोदर सावरकर 
( बाबा सावरकर ) 
 विनायक दामोदर सावरकर के जेष्ठ बंधू 
  की जयंती पर 
                             कोटी कोटी नमन 


प्रसिद्ध क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर (बाबा सावरकर) का जन्म 1879 ई. में महाराष्ट्र राज्य के नासिक नगर के निकट भागपुर नामक स्थान में हुआ था। नासिक में ही उनकी शिक्षा हुई। आरंभ में उनकी रुचि धर्म, योग, जप, तप आदि विषयों की ओर थी।
1897 में प्लेग आफीसर रेंड के अत्याचारों से क्रुद्ध चापेकर बंधुओं ने उसकी हत्या की और उससे पूरे महाराष्ट्र में हलचल मच गई तो गणेश पर, जो बाबा सावरकर कहलाते थे, इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। एक बार तो वे सन्न्यास लेने की सोचने लगे थे पर प्लेग में पिता की मृत्यु हो जाने से छोटे भाईयों की शिक्षा-दीक्षा आदि का दायित्व आ जाने से उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।
महाराष्ट्र में उस समय ‘अभिनव भारत’ नामक क्रांतिकारी दल काम कर रहा था। विनायक सावरकर इस दल से संबद्ध थे। वे जब इंग्लैण्ड चले गए तो उनका काम बाबा सावरकर ने अपने हाथों में ले लिया। वे विनायक की देशभक्त की रचनाएँ और उनकी इंगलैण्ड से भेजी सामग्री मुद्रित कराते, उसका वितरण करते और ‘अभिनव भारत’ के लिए धन एकत्र करते। यह कार्य सरकार की दृष्टि से ओझल नहीं रहा।
1909 में वे गिरफ्तार किए गए। देशद्रोह का मुक़दमा चला और आजीवन कारावास की सज़ा देकर अंडमान भेज दिए गए। 1921 में वहाँ से भारत लाए गए और एक वर्ष साबरमती जेल में बंद रह कर 1922 में रिहा हो सके। गणेश सावरकर डॉ. हेडगेवार के संपर्क में आए गणेश दामोदर सावरकर ने अनेक पुस्तकें लिखीं। दुर्गानंद के छद्म नाम से उनकी पुस्तक ‘इंडिया एज़ ए नेशन’ सरकार ने जब्त कर ली थी। वे हिन्दू राष्ट्र और हिन्दी के समर्थक थे।
16 मार्च  1945 में उनका देहांत हो गया।

Saturday 10 June 2017



भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद राम प्रसाद "बिस्मिल" जी को उनके जन्म दिवस पर शत शत नमन।
My tribute to the great Indian freedom fighter Shaheed Ram Prasad "Bismil" Ji on his birth anniversary.



 
देश की ख़ातिर मेरी दुनिया में यह ताबीर[1] हो
हाथ में हो हथकड़ी, पैरों पड़ी ज़ंजीर हो

सर कटे, फाँसी मिले, या कोई भी तद्बीर[2] हो
पेट में ख़ंजर दुधारा या जिगर में तीर हो

आँख ख़ातिर तीर हो, मिलती गले शमशीर हो
मौत की रक्खी हुई आगे मेरे तस्वीर हो

मरके मेरी जान पर ज़ह्मत[3] बिला ताख़ीर[4] हो
और गर्दन पर धरी जल्लाद ने शमशीर हो

ख़ासकर मेरे लिए दोज़ख़ नया तामीर[5] हो
अलग़रज़[6] जो कुछ हो मुम्किन वो मेरी तहक़ीर[7] हो

हो भयानक से भयानक भी मेरा आख़ीर हो
देश की सेवा ही लेकिन इक मेरी तक़्सीर[8] हो

इससे बढ़कर और भी दुनिया में कुछ ताज़ीर[9] हो
मंज़ूर हो, मंज़ूर हो मंज़ूर हो, मंज़ूर हो

मैं कहूँगा ’राम’ अपने देश का शैदा हूँ मैं
फिर करूँगा काम दुनिया में अगर पैदा हूँ मैं

 शब्दार्थ 
  1. कष्ट की कल्पना 
  2. पेशबन्दी 
  3. क्लेश 
  4. अविलम्ब 
  5. निर्माण
  6. अधिक क्या कहूँ, किंबहुना  
  7. दुर्दशा
  8. गुनाह, 
  9. अपराध










On the auspicious occasion of Gurupurab of 6th Shri Guru Hargobind Singh JI I want to extend my best wishes to all my friends, across the India and around the world.
६ वें पातशाही श्री गुरु हरगोबिंद जी के गुरुपुरब पर समस्त साध संगत को लख लख वधाई हो
੬ ਵੀਂ ਪਾਤਸ਼ਾਹਿ ਸ਼੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰਪੁਰਬ ਤੇ ਸੰਗਤ ਨੂੰ ਲਁਖ ਲਁਖ ਵਾਧਾਈ ਹੋਵੇ


Friday 9 June 2017



Nation first Party next Self last
सब से पहले राष्ट्र फिर पार्टी आखिर में खुद
ਸਭ ਤੌ ਪਹਿਲਾ ਦੇਸ਼ ਫਿਰ ਪਾਰਟੀ ਆਖੀਰ ਵਿਚ ਖੁਦ


Thursday 8 June 2017



On the auspicious occasion of 619 Sh. Kabir Dass Ji Jayanti I convey my heartiest greetings to all my friend.
संत शिरोमणि श्री कबीर दास जी महाराज
की 619 वी जयंती की आप सब को
हार्दिक शुभकामनायें



महान आदिवासी वीर जननायक और धरती बाबा
बिरसा मुंडा जी को उनके पुण्यतिथि पर 
शत शत नमन 


 बिरसा मुंडा 19वीं सदी के एक प्रमुख आदिवासी जननायक थे। उनके नेतृत्‍व में मुंडा आदिवासियों ने 19वीं सदी के आखिरी वर्षों में मुंडाओं के महान आन्दोलन उलगुलान को अंजाम दिया। बिरसा को मुंडा समाज के लोग भगवान के रूप में पूजते हैं।

अनुक्रम

आरंभिक जीवन

सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म १५ नवम्बर १८७५ को झारखंड प्रदेश में राँची के उलीहातू गाँव में हुआ था। साल्गा गाँव में प्रारम्भिक पढाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढने आये। इनका मन हमेशा अपने समाज की ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी बुरी दशा पर सोचता रहता था। उन्होंने मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिये अपना नेतृत्व प्रदान किया। १८९४ में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की।

मुंडा विद्रोह का नेतृत्‍व

1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती बाबा" के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।

विद्रोह में भागीदारी और अन्त

बिरसा मुण्डा का राँची स्थित स्टेच्यू
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।
जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये।
बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।
बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा हवाई-अड्डा भी है।

इन्हें भी देखें

Sources from Wikipedia

Monday 5 June 2017


राष्ट्र की एकता, प्रभुसत्ता, अखंडता व सुरक्षा के खिलाफ कार्य करने वाले के खिलाफ कभी कभी राष्ट्र हित में सुरक्षा हेतु कठोर निर्णय लेने की ज़रूरत होती हैं।
देश की सुरक्षा व हित सभी चीजों से ऊपर है इसे स्वीकार करने में किसी सच्चे देशवासी को दिक्कत नहीं होनी चाहिये।
मुझे इस समय अपने अग्रज स्व .आदर्श ' प्रहरी ' जी की कुछ पंक्तियां याद आ रहीं हैं -
" समझौते तो हों ,पर इतना य़ाद हो ,
राष्ट्र प्रथम हो ,जो हो इसके बाद हो ,
रखें सभी के प्रति हम सदभावना ,
ऐसा न हो ,बाद में पश्चाताप हो ."
जय हिन्द
भारत माता की
जय वन्दे मातरम

#its_kamboj




Congratulations to ISRO team on the successful launch of GSLV Mk III-D1 carrying the 3,139 kg GSAT-19 satellite.

  

Sunday 4 June 2017



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक देशभक्त श्री माधव सदाशिव गोलवलकर जी ( गुरु जी ) की पुण्यतिथि पर कोटि नमन
My salutations to the great visionary & second Sarsanghchalak of RSS Sh. Guruji 'Madhav Sadashiv Golwalkar' ji on his death anniversary